Vidyapati kavita : आजु नाथ एक

Vidyapati kavita : आजु नाथ एक
आजु नाथ एक [ महाकवि विद्यापति ]
एहि गीतक रचनाकार महाकवि विद्यापति छथि । प्रस्तुत... गीत शिव स्तुति, भक्ति पक्षक थिक । पार्वती शिव सं कहैत छथिन जे-हे नाथ । आइ एक महा ब्रतक दिन छैक जाहि सं हमरा महा सुखक अनुभव भ’ रहल अछि । हे शिव आहाँ नटराजक भेष धारण करू आ डमरू बजा तांडव नृत्य करू । शिव कहैत छथिन जे हे गौरा आहाँ जे हमरा नाच’ कहैत छी से हम कोना नाचब । कारण नाच सं हमरा चारिटा खतरा सं हम चिंतित छी । जाहि सं बाचब मोश्किल अछि । नृत्यक कारण चान सं अमृतक बूँद धरती पर टपकत जाहि सं बघम्बर सजीव भ’ उठत । सजीव भेलाक बाद बाघ बसहा क’ खा जायत । दोसर जटाजूट सं सांप ससरि पृथ्वी पर विचरण करत आ जेकर फल होयत जे बेटा कार्तिक क पोसल मयुर ओ खा जायत । तेसर जटा सं गंगा छिलकि पृथ्वी जल सं भरि जायत । ओ गंगा सहस्त्रमुखी भ’ बहय लगतीह । एहि स्थिति के सम्हारब पार नहि लागत । चारिम मुंड माल खसि बिखरि जायत आ सभ जीबित भ’ उठत । मसानी जागि जायत । तखन आहाँ एत’ सं पड़ा जायब । जखन आहाँ पड़ा जायब तखन ई नृत्य के देखत? ई गीत विद्यापति गओलनि आ कहलनि जे शिव पार्वतीक मानक रक्षा करैत नृत्य सेहो केलनि तथा संभावित खतरा क’ सेहो बचा लेलनि ।
Maithili Kokil mahakavi vidyapati

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