Vidyapati Kavita : Madhav Hamar Ratal

Vidyapati Kavita : Madhav Hamar Ratal
माधव हमर रटल दुर देश [ महाकवि विद्यापति ]
प्रस्तुत रचना महाकवि विद्यापति द्वारा ...रचित कएल गेल अछि । एहिठाम माधबक तात्पर्य प्रियतम सं अछि । नायिकाक प्रियतम दुर देस अर्थात परदेस मे रहैत छनि । प्रियतमक कुसल-छेम कहय बाला नायिका क’ कियो नहि भेटैत छनि । प्रियतम लाख कोस दुर रहथु मुदा जुग जुग जिबउथ । ई त हमर अभाग अछि जे ओ हमरा सं फराक छथि, एहि मे हुनकर कोनों दोस नहि छनि । दैब हमर करमे बाम क’ देलनि तैं ने ओ हमर सभटा नेह आ पिरीत बिसरि गेलाह । हृदय दुःख-वेदना सं भरि गेल अछि ओ वेदना तीर जका बेधने जा रहल अछि । ठीके अनकर दुःख के आन की वुझतैक । कवि जयराम विद्यापति कहैत छथि तखन त एहि दुःख मे राजा सेहो किछु नहि क’ सकैत छथि कारण हिनकर दैबे वाम भय गेल छथिन ।

Maithili Kokil mahakavi vidyapati 

Post a Comment