Vidyapati Kavita : sakhi he hamar dukhak nahi or

Vidyapati Kavita : sakhi he hamar dukhak nahi or
सखि हे हमर दुखक नहि ओर [ महाकवि विद्यापति ]
हे सखी ! हमर दुखक कोनो अंत नहि छैक । ई मेघौन समय, भादो मास आ ताहि पर सं पहु बिहिन सुन हमर घर । ई मेघ रहि रहि जोर सं गरजि रहल अछि आ चारु कात अन्हार केने चलि जाइत अछि । सम्पूर्ण धरती पर बरखा भय रहल छै । एहन समय पहु पहुनाइ क’ रहल छथि आ ई कामदेव अपन अमोघ बाण सं हमरा बेधने जाइत अछि । सैकड़ों बज्र खसैत देखि हमर मोन मयुर जकाँ नाचि रहल अछि । ई मत्त बेंग सभ टर्र टर्र करैत डाकनि द’ रहल अछि जाहि सं लगैए जे हमर छाती फाइट जैत । मेघ तेहन घटाटोप क’ के आयल अछि जे चारुकात भीषण अन्हार पसरि गेल छै आ जकर डरे बिजली सेहो कांपि रहल छैक । विद्यापति कहैत छथि जे एहन समय मे पहु बिना कोना दिन-राति कटतीह ।Maithili Kokil mahakavi vidyapati

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