Vidyapati kavita : Ugna Re mor

Vidyapati geet : Ugna re Mor
उगना रे मोर कत’ गेलाह [ महाकवि विद्यापति ]
विद्यापति महादेबक एहन भक्त रहैथ जे ओ विद्यापतिक ओतय नोकर बनि रहय लगलाह । मुदा भेद फुजला पर ओ विद्यापति ओतय सं अलक्षित भ’ गेलखीन । विद्यापति बताह जकाँ करय लगलाह एबं ओही अबस्था मे पदक रचना करय लगलाह, सैह पद थीक उगना रे मोर कतय गेलाह । हमर उगना कतय चलि गेलह ? हे शिव अहाँ कतयचलि गेलाह, हे शिव तोरा की भ गेलह ? भांग नहि झोरी मे भेटैत छलह त’ कोना रुसि रहैत छलह आ जखने ताकि हेरि क’ आनि दैत छलियह त’ कोना खुशी भ’ जायत छलह । से तू कत’ चलि गेलह ? जे कियो हमरा उगना क’ पता कहत ओकरा हम कंगना उपहार मे देबनि । हे शिव त’ भेट गेलाह, हे वैह नंदन बन मे छथि । हे देखू, गौरियो प्रसन्न भ’ उठलीह । हमरो क्लेश मेटा रहल अछि । हमरा त’ उगनेटा सं काज अछि । तीनू लोकक ई राज-पाट हमरा लेल हितकर नहि अछि ।

Maithili kokil mahakavi Vidyapati

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