Vidyapati Kavita : chanda Jani Ug aa bhavartha

aaha sab ka vidyapati geet ta nik jarur lagat het . maithili ka har ghar me vidyapati ka geet bhor aa shanjha jarur gel jayat chiya . hum yahi series ka sahayata sa vidyapati geet ka aarth bujbay ka koshish keloy han , ye likhal gel han rajni aa satya narayan jha ka davra .

Vidyapati Kavita : chanda Jani Ug

चंदा जनि उग [ महाकवि विद्यापति ]
हे चान, आजुक राति तों नहि उगह । हम पिया क’ चिट्...ठी लिख क’ पठेबनि । अर्थात आजुक राति क’ अन्हारे रह दएह, जाहि सं हम अभिसार क’ सकी । साओनक मास छैक, हम साओन सं सिनेह करैत छी । एहि मे अभिसार करब बर सुलभ छैक । अर्थात साओन मास मे मेघौन रहने अन्हार रहैत छैक एहि मे हम प्रसन्न भ’ अभिसार रचायब । हम राहु क’ बुझा सुझा क’ मिला लेब । चान क’ ओ राहु घोंटि जायत ओ उगलत नहि । हे जलधर मेघ, तों हमरा सं कोटि कोटि रत्न ल’ लएह आ आजुक एहि राति क’ अन्हार घुप्प क’ दएह । विद्यापति क’ कहब छनि जे अभिसार क’ ई शुभ समय थिक । नीक लोक एहने समय मे परोपकार करैत छैक ।
भावार्थ: प्रियतम सं अभिसार अर्थात प्रेम अन्हारे मे करब नीक लगैत छैक ।

Maithili Kokil mahakavi vidyapati

Post a Comment