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Vidyapati kavita : Mora Re Aanganma
मोरा रे अ॑गनमा चनन केर गछिया [ महाकवि विद्यापति ]
मिथिला अंगना मे, ताहू मे केराक... अथबा चाननक गाछ पर यदि कौआ कुचरय त बुझू कतौ सं शुभ समाचार आयत । एहि ठाम महाकवि विद्यापति तदनुसार गीतक रचना केलनि अछि ।
हमरा आँगन क’ चाननक गाछ, ताहि पर कौआ कुचरि रहल अछि । लगैत अछि कोनो शुभ समाचार अछि । रे कौआ तोहर लोल हम सोना सं मढ़ा देबौ जों हमर प्रियतम आइ आबि जाथि ! हे सखी बहिनपा सभ झूमरि, लोरी गबैत जाह ! आइ हम मदन क’ आराधना मे जा रहल छी । चारु दिस चंपा, भालसरी आदि फूल फुलायल अछि आ ताहि पर सं ई इजोरिया राति ! हम कोना क’ कामदेबक आराधना क’ सकब । किएक त’ एहि भेंटक त’ उपहार पैघ होयछ । रे कागा, खराब समय मे कियो हित नहि होयछ ! ई बात हम आंखि पसारि क’ देख लेलियैक अछि । विद्यापति कवि गबैत कहैत छथि जे अहाँक पहु गुणक आगर छथि जेना राजा भोगेश्वर छथि तथा जे पद्मा देवीक संग रमण करैत छथि ।
विद्यापतिक गीत कतओक श्रेणी मे बाँटल अछि मुदा हमरा लोकनि जाहि परियोजना पर काज क’ रहल छी अर्थात महकविक जे गीत अर्थक संग फेस बुक पर द’ रहल छियैक ओहि गीत क’ मुख्यतः तीन श्रेणी यथा श्रृंगार, विरह एबं भक्ति रस मे राखल गेल अछि । ”मोरा रे अंगनमा चनन केर गछिया”-विरह श्रेणी मे अबैत छैक ।
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