***सुन्नर मिथिला, चानन मिथिला***
मिथिला स न, चानन नगरी कतअ,
बोली में बहैयत छैय, गंगा के धार
ऐहन निर्मल वाणी क त अ...
प्रात: वंदन होइया ऐ त अ
घर घर सांझ परैया यौ,
चाहे कत बो बरका भ अ जाऊ
माँ बापक बौ ऐ, रहैय छैय यौ...
एखनो चरण छुबि, प्रणाम जत अ
घूँघट में कनिया च लै ई छैय यौ,
मिथिला सन सांस्कृति क तौ अ
क अ हु की, भेटैय छैय यौ...
ऐखनो धरि ''पाहून'' के ऐ त अ
पिड़ही पर, बईस बई छैय यौ,
तरुआ-बघरु आ, साच्चार लगा कअ
खूब स्वागत, करै छैय यौ...
भाग्य मिथिला के, या भाग्य ''राम जी'' के
''अभिषेक'' ई ने ज नै या यौ,
पाहून ब ईन, आईब क मिथिला
भाग्य अपन ''ओ'' कहल खिन यौ...
मिथिला स न, सुन्नर नगरी कतअ
मिथिला स न, चानन नगरी कतअ.......2
अभिषेक कुमार झा......................
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