Vidyapati kavita : Nav Barndavan nav nav tarugan aa aarth

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Vidyapati kavita : Nav Barndavan nav nav tarugan

नव बृन्दावन नव नव तरुगन [ महाकवि विद्यापति ]
वसंत अएबाक कारण वृन्दावन नब लागि रह...ल अछि । नब नब गाछ मे नब नब फूल फुला गेल अछि । बसंत सेहो नब अछि । मलयानिल (दक्षिण-पवन) सेहो नब । एहन स्थित मे भमराक नब समूह माति गेल अछि । यमुना-तट परक शोभा-संपन्न कुंज-वन मे नब-नब प्रेम मे विभोर भ’ श्री कृष्ण विचरण क’ रहल छथि । आमक नब नब मज्जरक मधुआ सं माँतल, कोइलीक नब झुण्ड गाबि रहल अछि । नवयौवना सभक चित उमतल छै । एहि नब रसक संचार सं ओ सभ कानन दिस दौगि परल अछि । युवराज श्री कृष्ण नब छथि । गोपी सभ सेहो नब छथि । तैं ओ नब-नब ढंगे आपस मे हिलि-मीलि रहलि अछि । विद्यापतिक मति सेहो माँतल छनि, एहि मत्त समाज मे ।


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