देश के वर्तमान राजनीति के हालात पर नजइर डालइत एकटा रचना प्रस्तुत क रहल छी आशा ऐछी जे निक लगत:
जिवन कए अंतिम साँझ पर, कहैत अछि आब काज करब
लूट मचाबैत छल जए काईल्ह तक ,कहैत अछि आब दान करब |
वोट जुटाबै कए लोभ में, ई की की क सकैत अछि
दलितक मोन कए बहलाबै लेल ,कहैत अछि उत्थान करब |
//२//
कखनो ओकर कखनो एकर ई संग पकैर लैत अछि
हवा किम्हर बहैत अछि ओ ई जैन लेत अछि
जकरा काईल्ह तक ओ हिकारत के नजैर सँ देखैत छल
सब किछु बिसरा क तकरा , ई अपन मैन लैत अछि
//३//
सियासत एक मंडी अछि ,अतए इमान बिकाईत अछि
एक मनुख नहि बाँकी, सब सैतान भरल अछि
अतए ओहे सिंकन्दर अछि, जकरा में लाज होबै नहि बाकि
नहि दरिद्र हुए जे धन सँ , भले नजैर सँ खसैत अछि
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