प्रेम कलशसँ अमरित पीया तँ दिअ - ग़ज़ल
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गजल,
गजलक विडियो,
जगदानन्द झा 'मनु'
- on 09:24
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- on 06:57
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|| तिलासंक्रान्ति ||
" भरल चगेंरी मुरही चुरा "
" भरल चगेंरी मुरही चुरा "
उठ - उठ बौआ रै निनियाँ तोर ।
अजुका पाबनि भोरे भोर ।।
पहिने जेकियो नहयबे आई ।
भेटतौ तिलबा रे मुरही लाइ ।। उठ....
ई पावनि छी मिथिलाक पावनि
सब पावनि सं बड़का छी ।
भरल चगेंरी मुरही चुरा
तिलवा लाई उपरका छी ।।
उपर देहिया थर - थर काँपय
भीतर मनुआँ भेल विभोर ।। उठ....
चहल पहल भरि मिथिला आँगन
अइ पावनि के अजब मिठाई ।
आई देत जे जतेक डुब्बी
भेटतै ततेक तिलबा लाई ।।
मुन्ना देखि भरय किलकारी
जहिना वन में कोइलिक शोर ।। उठ...
बुढ़िया दादी बजा पुरोहित
छपुआ साडी कयलक दान ।
तील चाऊर बाँटथि मिथिलानी
एहि पावनि केर अतेक विधान ।।
"रमण" खिचड़ी केर चारि यार संग
परसि रहल माँ पहिर पटोर ।। उठ......
गीतकार
रेवती रमण झा "रमण"
- on 05:16
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- on 20:21
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|| जे छल सपना ||
सुन - सुन उगना ,
कंठ सुखल मोर जलक बिना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
नञि अच्छी घर कतौ !
नञि अंगना
नञि अछि पोखैर कतौ
नञि झरना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
अतबे सुनैत जे
चलल उगना
झट दय जटा सँ
लेलक झरना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
निर्मल जल सरि के
केलनि वर्णा |
कह - कह कतय सँ
लय लें उगना ||
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल --
अतबे सुनैत फँसी गेल उगना
"रमण " दिगम्बर जे
छल सपना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
मउहक गीत
in
REVTI RAMAN JAH "RAMAN",
मउहक गीत
- on 02:36
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|| मउहक गीत ||
रचित - रेवती रमण झा "रमण "
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना |
सारि छथि सोंझा , सरहोजि नव साजलि
वर विधकरी आगाँ में बैसलि
चहुँ नव - नव लोक भरल अंगना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना ||
एकटा हमर बात मानू यौ रघुवर
आजुक खीर , नञि करियौ अनादर
पुनि मउहक के थारी होयत सपना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना ||
" रमण " सासुर केर मान आइ रखियौ
सासुरक सौरभ ई खीर आइ चखियौ
बाजू - बाजू यौ दुहा मनाबू कोना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना |
:-
मउहक गीत - 2
खैयौ , खैयौ खीर यौ पाहुन
की छी गारि सुनैलय बैसल |
सोझ करैलय हमर धिया यौ
अहाँक घर में पैसल ||
खैयौ , खैयौ ------
सभ्य ग्राम केर उत्तम कुल सँ
निकहि बापक बेटा
जे - जे मंगलौ , देलौ सबटा
बेचि कय थारी लोटा
मान - मनौती अतिसय कयलौं
तनिक विवेक नञि जागल ||
खैयौ , खैयौ -----
सुभग नैन नक्स वर ओझा
कीय मति के बकलोल
सबटा ब्यंजन छोरी -छोरी कय
माय खुऔलथि ओल
सब कियो घर में सान्त स्वरूपहि
कियक अहाँ छी चंचल ||
खैयौ , खैयौ ------
जानू "रमण " खीर केर महिमा
ई मिथिला केर रीत
सुमधुर गीत गाबथि मिथिलानी
पावन परम पुनीत
तिरहुत देश हमर ई देखु ,
आइ हँसैया खल - खल
खैयौ , खैयौ -----
लेखक : -
रेवती रमण झा ''रमण "
मो - 91 9997313751
रचित - रेवती रमण झा "रमण "
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना |
सारि छथि सोंझा , सरहोजि नव साजलि
वर विधकरी आगाँ में बैसलि
चहुँ नव - नव लोक भरल अंगना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना ||
एकटा हमर बात मानू यौ रघुवर
आजुक खीर , नञि करियौ अनादर
पुनि मउहक के थारी होयत सपना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना ||
" रमण " सासुर केर मान आइ रखियौ
सासुरक सौरभ ई खीर आइ चखियौ
बाजू - बाजू यौ दुहा मनाबू कोना |
खीर खैयौ , नञि दूल्हा लजैयौ ऐना |
:-
मउहक गीत - 2
खैयौ , खैयौ खीर यौ पाहुन
की छी गारि सुनैलय बैसल |
सोझ करैलय हमर धिया यौ
अहाँक घर में पैसल ||
खैयौ , खैयौ ------
सभ्य ग्राम केर उत्तम कुल सँ
निकहि बापक बेटा
जे - जे मंगलौ , देलौ सबटा
बेचि कय थारी लोटा
मान - मनौती अतिसय कयलौं
तनिक विवेक नञि जागल ||
खैयौ , खैयौ -----
सुभग नैन नक्स वर ओझा
कीय मति के बकलोल
सबटा ब्यंजन छोरी -छोरी कय
माय खुऔलथि ओल
सब कियो घर में सान्त स्वरूपहि
कियक अहाँ छी चंचल ||
खैयौ , खैयौ ------
जानू "रमण " खीर केर महिमा
ई मिथिला केर रीत
सुमधुर गीत गाबथि मिथिलानी
पावन परम पुनीत
तिरहुत देश हमर ई देखु ,
आइ हँसैया खल - खल
खैयौ , खैयौ -----
लेखक : -
रेवती रमण झा ''रमण "
मो - 91 9997313751
MAITHILI HANUMAN CHALISA
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REVTI RAMAN JAH "RAMAN"
- on 07:10
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|| मैथिली - हनुमान चालीसा ||
लेखक - रेवती रमण झा " रमण "
|| दोहा ||
गौरी नन्द गणेश जी , वक्र तुण्ड महाकाय ।
विघ्न हरण मंगल करन , सदिखन रहू सहाय ॥
बंदउ शत - शत गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन श्री जानकी , दीय भक्ति अनुराग । ।
|| चौपाइ ||
जय हनुमंत दीन हितकारी ।
यश वर देथि नाथ धनु धारी ॥
श्री करुणा निधान मन बसिया ।
बजरंगी रामहि धुन रसिया ॥
जय कपिराज सकल गुण सागर ।
रंग सिन्दुरिया सब गुन आगर ॥
गरिमा गुणक विभीषण जानल ।
बहुत रास गुण ज्ञान बखानल ॥
लीला कियो जानि नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत गुण गौलक ॥
नारद - शारद मुनि सनकादिक ।
चहुँ दिगपाल जमहूँ ब्रह्मादिक ॥
लाल ध्वजा तन लाल लंगोटा ।
लाल देह भुज लालहि सोंटा ॥
कांधे जनेऊ रूप विशाल ।
कुण्डल कान केस धुँधराल ॥
एकानन कपि स्वर्ण सुमेरु ।
यौ पञ्चानन दुरमति फेरु ।।
सप्तानन गुण शीलहि निधान ।
विद्या वारिध वर ज्ञान सुजान ॥
अंजनि सूत सुनू पवन कुमार ।
केशरी कंत रूद्र अवतार ॥
अतुल भुजा बल ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ हजार योजन पर दिनकर ।
दुर्गम दुसह बाट अछि जिनकर ॥
निगलि गेलहुँ रवि मधु फल जानि ।
बाल चरित के लीखत बखानि ॥
चहुँ दिस त्रिभुवन भेल अन्हार ।
जल , थल , नभचर सबहि बेकार ॥
दैवे निहोरा सँ रवि त्यागल ।
पल में पलटि अन्हरिया भागल ॥
अक्षय कुमार के मारि गिरेलहुं ।
लंका में हरकंप मचयलहूँ ॥
बालिए अनुज अनुग्रह केलहु ।
ब्राहमण रुपे राम मिलयलहुँ ॥
युग चारि परताप उजागर ।
शंकर स्वयंम दया के सागर ॥
सुक्षम बिकट आ भीम रूप धरि ।
नैहि अगुतेलोहुँ राम काज करि ॥
मूर्छित लखन बूटी जा लयलहुँ ।
उर्मिला पति प्राण बचेलहुँ ॥
कहलनि राम उरिंग नञि तोर ।
तू तउ भाई भरत सन मोर ॥
अतबे कहि दृग बिन्दू बहाय ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय जय जय बजरंग अड़ंगी ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर हाथहि ।
राम रसायन सदिखन साथहि ॥
आठो सिद्धि नो निधि वर दान ।
सीय मुदित चित देल हनुमान ॥
संकट कोन ने टरै अहाँ सँ ।
के बलवीर ने डरै अहाँ सँ ॥
अधम उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल - सुरसरि जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे जोहि थकित दुहू लोचन ॥
यंत्र - मंत्र सब तन्त्र अहीं छी ।
परमा नंद स्वतन्त्र अहीं छी ॥
रामक काजे सदिखन आतुर ।
सीता जोहि गेलहुँ लंकापुर ॥
विटप अशोक शोक बिच जाय ।
सिय दुख सुनल कान लगाय ॥
वो छथि जतय , अतय बैदेही ।
जानू कपीस प्राण बिन देही ॥
सीता ब्यथा कथा सुनि कान ।
मूर्छित अहूँ भेलहुँ हनुमान ॥
अरे दशानन एलो काल ।
कहि बजरंगी ठोकलहुँ ताल ॥
छल दशानन मति के आन्हर ।
बुझलक तुच्छ अहाँ के वानर ॥
उछलि कूदी कपि लंका जारल ।
रावणक सब मनोबल मारल ॥
हा - हा कार मचल लंका में ।
एकहि टा घर बचल लंका में ॥
कतेक कहू कपि की - की कैल ।
रामजीक काज सब सलटैल ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू उजागर ॥
|| दोहा ||
|| दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया अवध नरेश ।
अनुदिन अपनों अनुग्रह , देबइ तिरहुत देश ॥
सप्त कोटि महामन्त्रे , अभि मंत्रित वरदान ।
बिपतिक परल पहाड़ इ , सिघ्र हरु हनुमान ॥
|| 2 ||
॥ दुख - मोचन हनुमान ॥
जगत जनैया , यो बजरंगी ।
अहाँ छी दुख बिपति के संगी
मान चित अपमान त्यागि कउ ,
सदिखन कयलहुँ रामक काज ।
संत सुग्रीव विभीषण जी के,
अहाँ , बुद्धिक बल सँ देलों राज ॥
नीति निपुन कपि कैल मंत्रना
यौ सुग्रीव अहाँ कउ संगी
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
वन अशोक, शोकहि बिच सीता
बुझि ब्यथा , मूर्छित मन भेल ।
विह्बल चित विश्वास जगा कउ
जानकी राम मुद्रिका देल ॥
लागल भूख मधु र फल खयलो हूँ
लंका जरलों यौ बजरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख--
वर अहिरावण राम लखन कउ
बलि प्रदान लउ गेल पताल ।
बंदि प्रभू अविलम्ब छुरा कउ
बजरंगी कउ देलौ कमाल ॥
बज्र गदा भुज बज्र जाहि तन
कत योद्धा मरि गेल फिरंगी ,
जगत जनैया ---अहाँ छी दुख -
वर शक्ति वाण उर जखन लखन ,
लगि मूर्छित धरा परल निष्प्राण ।
वैध सुषेन बूटी जा आनल ,
पल में पलटि बचयलहऊ प्राण ॥
संकट मोचन दयाक सागर ,
नाम अनेक , रूप बहुरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
नाग फास में बाँधी दशानन ,
राम सहित योद्धा दालकउ ।
गरुड़ राज कउ आनी पवन सुत ,
कइल चूर रावण बल कउ
जपय प्रभाते नाम अहाँ के ,
तकरा जीवन में नञि तंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
ज्ञानक सागर , गुण के आगर ,
शंकर स्वयम काल के काल ।
जे जे अहाँ सँ बल बति यौलक ,
ताही पठैलहूँ कालक गाल
अहाँक नाम सँ थर - थर कॉपय ,
भूत - पिशाच प्रेत सरभंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
लातक भूत बात नञि मानल ,
पर तिरिया लउ कउ गेलै परान ।
कानै लय कुल नञि रहि गेलै ,
अहाँक कृपा सँ , यौ हनुमान ॥
अहाँक भोजन आसन - वासन ,
राम नाम चित बजय सरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख -
सील अगार अमर अविकारी ,
हे जितेन्द्र कपि दया निधान ।
"रमण " ह्र्दय विश्वास आश वर ,
अहिंक एकहि बल अछि हनुमान ॥
एहि संकट में आबि एकादस ,
यौ हमरो रक्षा करू अड़ंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
|| 3 ||
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम
॥ छंद ॥
जय कपि काल कष्ट गरुड़हि ब्याल- जाल
केसरीक नन्दन दुःख भंजन त्रिकाल के ।
पवन पूत दूत राम , सूत शम्भू हनुमान
बज्र देह दुष्ट दलन ,खल वन कृषानु के ॥
कृपा सिन्धु गुणागार , कपि एही करू पार
दीन हीन हम मलीन,सुधि लीय आविकय ।
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास
अक्षय के काल थाकि गेलौ दुःख गाबि कय ॥
चौपाई
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ । रघुवर भक्त कार्य सलटाउ ॥
यतनहि धरु रघुवंशक लाज । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥
श्री रघुनाथहि जानकी जान । मूर्छित लखन आई हनुमान ॥
बज्र देह दानव दुख भंजन । महा काल केसरिक नंदन ॥
जनम सुकारथ अंजनी लाल । राम दूत कय देलहुँ कमाल ॥
रंजित गात सिंदूर सुहावन । कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥
गगन विहारी मारुति नंदन । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥
बाली दसानन दुहुँ चलि गेल । जकर अहाँ विजयी वैह भेल ॥
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी के लाल करु उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमति सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन सखा ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धरथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी के लाल करु उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमति सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन सखा ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमति सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धरथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
|| हनुमान द्वादस दोहा ||
रावण ह्रदय ज्ञान विवेकक , जखनहि बुतलै बाती |
नाश निमंत्रण स्वर्ण महलके , लेलक हाथ में पाती ||
सीता हरण मरन रावण कउ , विधिना तखन ई लीखल |
भेलै भेंट ज्ञान गुण सागर , थोरवो बुधि नञि सिखल ||
जकरे धमक सं डोलल धरनी , ओकर कंठ अछि सुखल |
ओहि पुरुषक कल्याण कतय ,जे पर तिरिया के भूखल ||
शेष छाउर रहि गेल ह्रदय , रावण के सब अरमान |
करम जकर बौरायले रहलै , करथिनं कते भगवन ||
बाप सँ पहिने पूत मरत नञि , घन निज ईच्छ बरसात |
सीढी स्वर्गे हमहिं लगायब , पापी कियो नञि तरसत ||
बिस भुज तीन मनोरथ लउ कउ , वो धरती पर मरिगेल |
जतबे मरल राम कउ हाथे , वो ततबे लउ तरी गेल ||
कतबऊ संकट सिर पर परय , भूलिकय करी नञि पाप |
लाख पुत सवालाख नाती , रहलइ नञि बेटा बाप ||
संकट मोचन भउ संकट में , दुःख सीता जखन बखानल |
अछि वैदेही धिक्कार हमर , भरि नयन नोर सँ कानल ||
स्तन दूधक धारे अंजनि , कयलनि पर्वत के चूर |
ओकरे पूत दूत हम बैसल , छी अहाँ अतेक मजबूर ||
रावण सहित उड़ा कउ लंका , रामे चरण धरि आयब |
हे , माय ई आज्ञा प्रभु कउ , जौ थोरबहूँ हम पायब ||
हे माय करू विश्वास अतेक , ई बिपति रहल दिन थोर |
दश मुख दुखक एतैय अन्हरिया , अहाँक सुमंगल भोर ||
" रमण " कतहुँ नञि अतेक व्यथित , हे कपि भेलहुँ उदाश |
सर्व गुणक संपन्न अहाँ छी , यौ पूरब हमरो आश ||
||5 ||
|| हनुमंत - पचीसी ||
बाप सँ पहिने पूत मरत नञि , घन निज ईच्छ बरसात |
सीढी स्वर्गे हमहिं लगायब , पापी कियो नञि तरसत ||
बिस भुज तीन मनोरथ लउ कउ , वो धरती पर मरिगेल |
जतबे मरल राम कउ हाथे , वो ततबे लउ तरी गेल ||
कतबऊ संकट सिर पर परय , भूलिकय करी नञि पाप |
लाख पुत सवालाख नाती , रहलइ नञि बेटा बाप ||
संकट मोचन भउ संकट में , दुःख सीता जखन बखानल |
अछि वैदेही धिक्कार हमर , भरि नयन नोर सँ कानल ||
स्तन दूधक धारे अंजनि , कयलनि पर्वत के चूर |
ओकरे पूत दूत हम बैसल , छी अहाँ अतेक मजबूर ||
रावण सहित उड़ा कउ लंका , रामे चरण धरि आयब |
हे , माय ई आज्ञा प्रभु कउ , जौ थोरबहूँ हम पायब ||
हे माय करू विश्वास अतेक , ई बिपति रहल दिन थोर |
दश मुख दुखक एतैय अन्हरिया , अहाँक सुमंगल भोर ||
" रमण " कतहुँ नञि अतेक व्यथित , हे कपि भेलहुँ उदाश |
सर्व गुणक संपन्न अहाँ छी , यौ पूरब हमरो आश ||
||5 ||
|| हनुमंत - पचीसी ||
॥ हनुमान वंदना ॥
शील नेह निधि , विद्या वारिध
काल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड तम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराजय
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज रावण- अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दीन मलीने पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
-:-
-:-
|| दोहा ||
संकट शोक निकंदनहि , दुष्ट दलन हनुमान |
अविलम्बही दुख दूर करू ,बीच भॅवर में प्राण ||
|| चौपाइ ||
जन्में रावणक चालि उदंड |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
वर विपदा केर टूटल पहार ||
तीरे तरकस वर धनुषही हाथ |
रने - वने व्याकुल रघुनाथ ||
मन मदान्ध मति गति सूचि राख |
नत सीतेहि, अनुचित जूनि भाष ||
झामरे - झुर नयन जल - धार |
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
|| 6 ||
|| हनुमान बन्दना ||
जय -जय बजरंगी , सुमतिक संगी -
सदा अमंगल हारी ।
मुनि जन हितकारी, सुत त्रिपुरारी -
एकानन गिरधारी ॥
नाथहि पथ गामी , त्रिभुवन स्वामी
सुधि लियौ सचराचर ।
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण आगर -
बहु विद्या बल सागर ॥
मारुती नंदन , सब दुख भंजन -
बिपति काल पधारु ।
वर गदा सम्हारू , संकट टारू -
कपि किछु नञि बिचारू ॥
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
बेकल जीवन तारल ।
वर खल दल मारल , वीर पछारल -
"रमण" क किय बिगारल ॥
|| 8 ||
बजरंग -विनय
सबहक काज सुगम सँ कयलों
हमर अगम कीय भेलै यौ |
रहलौं अहिंक शरण में हनुमंत
जीवन कीय भसिअयलै यौ ||
सबहक ----हमर --- २
क़डीरिक वीर सनक जीवन ई
मंद बसात नञि झेलल यौ |
हम दीन , अहाँ दीनबन्धु छी
तखन कीयक अवडेरल यौ ||
सबहक ----हमर --- २
अंजनी लाल , यौ केशरी नंदन
जग में कियो अपन नञि यौ |
एक आश , विश्वास अहाँक
वयस हमर झरि गेलै यौ ||
सबहक ----हमर --- २
मारुति नंदन , काल निकंदन
शंकर स्वयम अहाँ छी यौ |
"रमण "क जीवन करू सुकारथ
दया निधान कहाँ छी यौ
सबहक ----हमर --- २
|| 9 . ||
|| हनुमान - आरती ||
आरती आइ अहाँक उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन ।
अहाँक ह्र्दय में सतत विराजथि , लखन सिया रघुनंदन
कतबो करब बखान अहाँ के '
नञि सम्भव गुनगान अहाँके ।
धर्मक ध्वजा सतत फहरेलौ , पापक केलों निकंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
गुणग्राम कपि , हे बल कारी '
दुष्ट दलन शुभ मंगल कारी ।
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि गेल बीर दसानन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
सिया जी के नैहर , राम जी के सासुर '
पावन परम ललाम जनक पुर ।
उगना - शम्भू गुलाम जतय के , शत -शत अछि अभिनंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
नित आँचर सँ बाट बुहारी '
कखन आयब कपि , सगुण उचारी ।
"रमण " अहाँ के चरण कमल सँ , धन्य मिथिला के आँगन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
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