एतेक दिन कोना कऽ बितल, कहिया किछु बतलायब,

एतेक दिन कोना कऽ बितल, कहिया किछु बतलायब,
की सभ दिन एहिन चुपचाप रहि ,जीते-जी मरि जायब,...

सुनलौ अछि यादक फुलवारी, उजड़ि चुकल अछि रमन चमन,
हमरा हृदयक पनघटकेँ कहिया ,स्नेह-सिञ्चित कऽ जायब,.....

अहाँक पत्रकेँ एखनो सदखिन, हम पढ़ै छी एसगरमे,
कहिया आहा पहिने जका, चिट्ठिमे दरश देखायब,....

मानै छी रञ्जिश अछि, दुख अछि, कतऽ नञि अछि, अही कहु?
बस एतबे बातक खातिर की हमरा छोडि चलि जायब,....

सुनलौ अछि जे एहि बेरक सावन आयल आ चुप चुप चलि गेल,
अरमानक पतझड़िमे की अहाँ पत्तासँ झरि जायब ,.....


लेखक- गुञ्जन श्री
अनुवादक-रोशन कुमार मैथिल

Post a Comment