गीत @ जगदानन्द झा 'मनु'




कहु  तँ अहाँ कोना रहब
की की करब यौ पाहून
बिनु जतरे हम नैहर एलहुँ
कोना अहाँ रहब यौ पाहून।।

चूल्हा पजारब कोना अहाँ कहु
कोना राति बिताएब यौ पाहून
बारीक पटूआ तिते बुझलहुँ
छूछे कोना खाएब यौ पाहून।।

लिख-लिख हमहूँ निन्न नहि परलहुँ
अहाँकेँ  सुमरै छी यौ पाहून
की अहुँ एखन जागल होएब
नै सपनामे आबि कहै छी यौ पाहून।।

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